देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय में चार दिवसीय रंग कार्यशाला व प्रदर्शनी शुरू हो गई है। इस दौरान विशेषज्ञों ने आदिवासी जनजातीय कला पर चर्चा की। वहीं विद्यार्थियों ने कैनवास पर जनजातीय कला को उकेरा।
सोमवार को लोक कला पर आधारित कार्यक्रम में आदिवासी जनजातीय गौंड़ कला पर प्रकाश डाला गया। विशेषज्ञ जानकी ने कहा कि मध्य भारत से उद्भव हुई गौंड़ कला, लोक और आदिवासी जनजातीय कला का एक प्रकार है।
इसमें रंगों से भरे जटिल डिजाइन का संगम है जिसमें बिंदु और रेखाओं से पैटर्न तैयार कर प्रकृति, पशु-पक्षी और दैनिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है। दुनियाभर में इस कला की पहचान और प्रसिद्धि का मुख्य कारण कला की अद्वितीय और आश्चर्यजनक शैली है। इसलिए करियर के लिहाज से फाइन आर्ट्स छात्रों के लिए गौंड़ कला एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है। कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों की देखरेख में छात्र गौंड़ कला को कैनवास पर उतारेंगे और दो नवम्बर को प्रदर्शनी में इन चित्रों को प्रदर्शित किया जाएगा। इस दौरान जानकी ने छात्रों की गौंड़ कला संबंधित प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। डीन स्कूल ऑफ जर्नलिज्म, लिबरल आर्ट्स एंड फैशन डिजाइन प्रो. दीपा आर्या ने कहा कि कला को लेकर छात्र काफी उत्साहित हैं। इस दौरान डॉ. राजकुमार पांडेय, मोहन विश्वकर्मा, पूजा पांडेय आदि मौजूद रहे।